कम्बोज कौन थे
अक्सर यह सवाल हमसे
पूछा जाता रहा है वैसे तो कम्बोज को किसी परिचय की जरुरत नहीं है क्योकि यदि आपने
इतिहास को पढ़ा है तो आप देखेगे की शिक्षा में शुरू से ही इसका वर्णन शुरू हो जाता
है वैसे तो कम्बोज का इतिहास कितना पुराना है अंदाजा लगाना काफी मुश्किल है पर लिखित
प्रमाणों के आधार पर देखे तो 16 महाजनपद में से एक कंबोज भी है जिसको हमें हमेशा
शिक्षा लेते समय इतिहास में पढ़ा है यहाँ पर कम्बोज जनपद का वर्णन 600 ईसा पूर्व
मिलता है पर जब हम इतिहास को ध्यान से नहीं पढ़ते हम चुक कर जाते है
इतिहास में कंबोज का
वर्णन ऋग्वेद से मिलना शुरू हो जाता है
कंबोज का अर्थ- कंबोज का अर्थ सुंदर कंबलों का उपभोग करने वाले
लोग। दूसरा सुंदर भोजन करने वाले लोग।
16 महाजनपदों के नाम : 1. कुरु, 2. पंचाल, 3. शूरसेन, 4. वत्स,
5. कोशल, 6. मल्ल, 7. काशी, 8. अंग, 9. मगध, 10. वृज्जि, 11. चेदि,
12. मत्स्य, 13. अश्मक, 14. अवंति, 15. गांधार और 16. कंबोज।
उक्त 16 महाजनपदों के अंतर्गत छोटे जनपद भी होते थे।
कंबोज की स्थिति :
कंबोज देश का विस्तार कश्मीर से हिन्दूकुश तक था।
इसके दो प्रमुख नगर थे राजपुर और नंदीपुर। राजपुर को आजकल राजौरी कहा जाता है।> > *पाकिस्तान का हजारा जिला भी कंबोज के अंतर्गत ही
था। कंबोज के पास ही गांधार जनपद था।
पाकिस्तान का
पश्चिमी तथा अफगानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र ही गांधार राज्य के अंतर्गत आता था।
गांधार के दो प्रमुख नगर थे- पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा तक्षशिला।
*तक्षशिला इसकी राजधानी थी। इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा। कुषाण शासकों के दौरान यहां बौद्ध धर्म खूब फला-फूला, लेकिन खलीफाओं के आक्रमण ने इसे नष्ट कर दिया।
*कंबोज उत्तरापथ के गांधार के निकट स्थित था जिसकी ठीक-ठाक स्थिति दक्षिण-पश्चिम के पुंछ के इलाके के अंतर्गत मानी जा सकती है।
वाल्मीकि रामायण के
अनुसार कंबोज वाल्हीक और वनायु देश के पास स्थित है।
*आधुनिक मान्यता के
अनुसार कश्मीर के राजौरी से तजाकिस्तान तक का हिस्सा कंबोज था जिसमें आज का पामीर
का पठार और बदख्शां भी हैं। बदख्शां अफगानिस्तान में हिन्दूकुश पर्वत का निकटवर्ती
प्रदेश है और पामीर का पठार हिन्दूकुश और हिमालय की पहाड़ियों के बीच का स्थान है।
ग्रंथों में कंबोज * वाल्मीकि रामायण, महाभारत, राजतरंगिणी, कालिदासकृत रघुवंश आदि में कंबोज की स्थिति और
इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
* प्राचीन संस्कृत एवं
पालि साहित्य में कंबोज और गांधार का नाम साथ-साथ आता है। ऋग्वेद में गांधार के
उत्कृष्ट ऊन और कंबोज के कंबलों का उल्लेख मिलता है।
वाल्मीकि-रामायण में कंबोज, वाल्हीक
और वनायु देशों को श्रेष्ठ घोड़ों के लिये उत्तम देश बताया है, जो इस प्रकार है:
“ |
'कांबोज विषये जातैर्बाल्हीकैश्च हयोत्तमै:
वनायुजैर्नदीजैश्च पूर्णाहरिहयोत्तमै:[3] |
„ |
महाभारत के अनुसार अर्जुन ने अपनी उत्तर दिशा की
दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में दर्दरों या दर्दिस्तान के निवासियों के साथ ही
कांबोजों को भी परास्त किया था-
'गृहीत्वा तु बलं सारं फाल्गुन: पांडुनन्दन:
दरदान् सह काम्बोजैरजयत् पाकशासनि:'[4]
महाभारत[5] और राजतरंगिणी[6] में कंबोज की स्थिति उत्तरापथ में बताई गई है।
महाभारत में कहा गया
है कि कर्ण ने राजपुर पहुंचकर कांबोजों को जीता, जिससे राजपुर कंबोज का एक नगर सिद्ध होता है- 'कर्ण राजपुरं गत्वा काम्बोजानिर्जितास्त्वया'।[7]
कालिदास ने रघुवंश में रघु के द्वारा कांबोजों की पराजय का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है कि :
“ |
काम्बोजा: समरे
सोढुं तस्य वीर्यमनीश्वरा:, गजालान्
परिक्लिष्टैरक्षोटै: सार्धमानता:[3] |
„ |
इस उद्धरण में
कालिदास ने कंबोज देश में अखरोट वृक्षों का जो वर्णन किया है वह बहुत समीचीन है।
इससे भी इस देश की स्थिति कश्मीर के आस पास प्रतीत होती हैं।
महाभारत में कंबोज
के कई राजाओं का वर्णन है जिनमें सुदर्शन और चंद्रवर्मन मुख्य हैं।
कौटिल्य अर्थशास्त्र में कंबोज के 'वार्ताशस्त्रोपजीवी' (खेती और शस्त्रों से जीविका चलाने वाले) संघ का
उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि मौर्यकाल से पूर्व यहां गणराज्य स्थापित था। मौर्यकाल में चंद्रगुप्त के साम्राज्य में यह गणराज्य विलीन हो गया होगा।
* महाभारत के अनुसार
कंबोज में उत्तम घोड़े और अखरोट मिलते हैं।
* महाभारत के अनुसार
अर्जुन ने अपनी उत्तर दिशा की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में दर्दरों या
दर्दिस्तान के निवासियों के साथ ही कंबोजों को भी परास्त किया था।
* प्रसिद्ध वैयाकरण
पाणिनी ने 'कंबोजाल्लुक' सूत्र से (अष्टाध्यायी 4, 1, 173) में इस जनपद के बारे में उल्लेख किया था। पाणिनी
गांधार प्रदेश के निवासी थे।
* पतंजलि ने भी
महाभाष्य में कंबोज का उल्लेख किया है।
* इतिहासकार कल्हण के
अनुसार कश्मीर नरेश ललितादित्य ने उत्तरापथ के अन्य कई देशों के साथ कंबोज को भी
जीता था।
प्राचीन संस्कृत एवं पाली साहित्य में कंबोज और गांधार का नाम प्राय: साथ-साथ आता
है। जिस प्रकार गांधार के उत्कृष्ट ऊन का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है
उसी प्रकार कंबोज के कंबलों का उल्लेख यास्क के निरुक्त में हुआ है वास्तव में यास्क ने 'कंबोज' शब्द की
व्युत्पत्ति ही 'सुंदर कंबलों का उपभोग करनेवाले' या विकल्प में सुंदर भोजन करनेवाले लोग-इस प्रकार
की है। गांधार और कंबोज इन दोनों जनपदों के अभिन्न संबंध की परंपरा से ही इनका
सान्निध्य सिद्ध हुआ है। गांधार अफगानिस्तान (कंदहार) का संवर्ती प्रदेश था और इसी के पड़ोस
में पूर्व की ओर कंबोज की स्थिति थी।
* कर्ण ने कंबोज के राजपुर नामक नगर पहुंचकर कंबोजों को हराया था।
* महाभारत में कंबोज के कई राजाओं का वर्णन है जिनमें सुदर्शन, सुदक्षिण, कमठ और चंद्रवर्मन मुख्य हैं।
महाभारत के युद्ध
में काबोजों ने कौरवों का साथ दिया था। यह द्रष्टव्य है कि कांबोजादि को आकृति
संबंधी जिन विशेषताओं का वर्णनमहाभारत के इस प्रसंग में हैं वे आज भी इस प्रदेश के
निवासियों में विद्यमान हैं।
महाभारत में
कांबोजों के राजपुर नामक नगर का भी उल्लेख है जिसे कर्ण ने जीता था (द्रोण. ४, ५)।
पतंजलि ने भी महाभाष्य में कंबोज का उल्लेख किया है।
पालि ग्रंथ
अंगुत्तरनिकाय में भारत के १६ महाजनपदों में कंबोज की भी गणना की गई है (१,२१३; ४,२५२-२५६-२६१)।
कौटिल्य अर्थशास्त्र में कंबोज के 'वार्ताशस्त्रोपजीवी' (खेती और शस्त्रों से जीविका चलाने वाले) संघ का
उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि मौर्यकाल से पूर्व यहां गणराज्य स्थापित था। मौर्यकाल में चंद्रगुप्त के साम्राज्य में यह गणराज्य विलीन हो गया होगा।
अशोक के अभिलेखों में कांबोजों का उल्लेख, सीमावर्ती यवनों, नाभकों, नाभपंक्तियों, भोजपितिनकों और गंधारों आदि के साथ किया गया है (शिलालेख १३)
जिससे यह स्पष्ट हो
जाता है की कम्बोज एक राज्य के निर्माता थे और ये क्षत्रिय
जाति से सम्बन्ध
रखते थे
कम्बोजो का इतना
पुराना इतिहास है परन्तु आजादी में भी कम्बोज का योगदान हमेशा याद रहता है शहीद
उधम सिंह कम्बोज जिन्होंने जलियावाला बाग हत्याकांड का बदला लंदन में General O Dayer को भरी सभा में गोली मार कर लिया था I
फिर भी अभी तक कंबोज
के नाम की स्मृति काफिरिस्तान के निकटवर्ती प्रदेश के कुछ कबीलों के नामों, जैसे कंबोजी, कमोज और कामोजे आदि में सुरक्षित है।
और भारत में हरियाणा
,पंजाब व अन्य राज्यों में आज भी कम्बोज विधमान है I
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