पृथ्वीराज चौहान की जीवनी
इतिहास में वीरों को किसी भी पहचान की जरुरत नहीं होती उनकी पहचान
अमिट होती है उनको अनदेखा किया नहीं जा सकता है भारत बर्ष वीरों की भूमि है इतिहास
वो है जो हमको ज्ञान देता है मैं आपको इतिहास के उस शासक के बारे में बता रहा हु
जो पुरे विश्व में प्रसिद्ध है
एक ऐसा वीर योद्धा जिसने अपने
बचपन में ही शेर का जबड़ा फाड़ डाला था पृथ्वीराज तृतीय (शासनकाल: 1178–1192) जिन्हें आम तौर पर पृथ्वीराज चौहान कहा जाता है,
प्रारम्भिक जीवन
पृथ्वीराज का जन्म चौहान राजा सोमेश्वर और रानी
कर्पूरादेवी के घर हुआ था। पृथ्वीराज और उनके छोटे भाई हरिराज दोनों का जन्म
गुजरात में हुआ था जहाँ उनके पिता सोमेश्वर को उनके रिश्तेदारों ने चालुक्य दरबार में पाला था। पृथ्वीराज गुजरात
से अजमेर चले गए जब पृथ्वीराज द्वितीय की मृत्यु के बाद उनके पिता सोमेश्वर को
चौहान राजा का ताज पहनाया गया। सोमेश्वर की मृत्यु 1177 (1234 (वि.स.) में हुई थी। जब
पृथ्वीराज लगभग 11 वर्ष के थे। पृथ्वीराज, जो उस समय नाबालिग थे ने अपनी माँ के साथ
राजगद्दी पर विराजमान हुए। इतिहासकार दशरथ शर्मा के अनुसार, पृथ्वीराज ने 1180 (1237 वि॰स॰) में प्रशासन का वास्तविक नियंत्रण ग्रहण किया।
दिल्ली में अब खण्डहर हो चुके किला राय पिथौरा के निर्माण का
श्रेय पृथ्वीराज को दिया जाता है।
चौहान वंश के राजा थे।
उन्होंने वर्तमान उत्तर-पश्चिमी भारत में पारम्परिक चौहान क्षेत्र सपादलक्ष पर शासन किया।
उन्होंने वर्तमान राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से पर भी नियन्त्रण किया।
उनकी राजधानी अजमेर में स्थित थी
शुरुआत में पृथ्वीराज ने कई पड़ोसी हिन्दू राज्यों के खिलाफ़ सैन्य
सफलता हासिल की। विशेष रूप से वह चन्देल राजा परमर्दिदेव के ख़िलाफ़ सफल रहे
थे। उन्होंने ग़ौरी राजवंश के शासक मोहम्मद ग़ौरी के प्रारम्भिक
आक्रमण को भी रोका। हालाँकि,
1192 में तराइन की दूसरी
लड़ाई में ग़ौरी ने पृथ्वीराज को हराया और कुछ ही समय बाद उन्हें मार डाला। तराइन
में उनकी हार को भारत की इस्लामी विजय में एक ऐतिहासिक घटना के रूप में देखा जाता
है और कई अर्ध-पौराणिक लेखनों में इसका वर्णन किया गया है। इनमें सबसे लोकप्रिय पृथ्वीराज रासो है, जो उन्हें
"राजपूत" के रूप में प्रस्तुत करता है।
पृथ्वीराज के शासनकाल के दौरान के शिलालेख संख्या में कम हैं और
स्वयं राजा द्वारा जारी नहीं किए गए हैं उनके बारे में अधिकांश जानकारी
मध्ययुगीन पौराणिक वृत्तान्तों से आती है। तराइन की लड़ाई के मुसलमान खातों के
अलावा हिन्दू और जैन लेखकों द्वारा कई मध्ययुगीन महाकाव्य में उनका उल्लेख किया
गया है। इनमें पृथ्वीराज विजय, हम्मीर महावाक्य और
पृथ्वीराज रासो शामिल हैं।
पृथ्वीराज विजय पृथ्वीराज के शासनकाल से एकमात्र जीवित साहित्यिक
पाठ है। पृथ्वीराज रासो जिसने पृथ्वीराज को एक महान राजा के रूप में लोकप्रिय किया
को राजा के दरबारी कवि चंद बरदाई द्वारा लिखा कहा
जाता है।
ग़ोरी से युद्ध
1175 में जब पृथ्वीराज
एक बच्चा था, मोहम्मद ग़ोरी ने सिंधु नदी को पार किया और मुल्तान पर कब्जा कर
लिया। 1178 में उसने गुजरात पर आक्रमण किया, जिस पर चालुक्यों (सोलंकियों) का शासन
था। चौहानों को ग़ोरी आक्रमण का सामना नहीं करना पड़ा क्योंकि गुजरात के चालुक्यों
ने 1178 में कसरावद के युद्ध में मोहम्मद को हरा दिया था।
हालांकि, हिन्दू और जैन लेखकों का कहना है कि पृथ्वीराज ने मारे जाने से
पहले 17 बार मोहम्मद को हराया था।
तराईन का प्रथम युद्ध
1190–1191 के दौरान, मोहम्मद ग़ौर ने चौहान क्षेत्र पर आक्रमण किया और तबरहिन्दा या
तबर-ए-हिन्द (बठिंडा) पर कब्जा कर लिया।
उन्होंने इसे 1,200 घुड़सवारों के समर्थन वाले ज़िया-उद-दीन, तुलक़ के क़ाज़ी के अधीन रखा। जब
पृथ्वीराज को इस बारे में पता चला, तो उसने दिल्ली के गोविंदराजा सहित
अपने सामंतों के साथ तबरहिन्दा की ओर प्रस्थान किया।
तबरहिन्दा पर विजय प्राप्त करने के बाद मुहम्मद की मूल योजना अपने
घर लौटने की थी लेकिन जब उन्होंने पृथ्वीराज के बारे में सुना, तो उन्होंने लड़ाई
का फैसला किया। वह एक सेना के साथ चल पड़े और तराईन में पृथ्वीराज की
सेना का सामना किया। आगामी लड़ाई में,
पृथ्वीराज की सेना ने निर्णायक रूप से
ग़ोरियों को हरा दिया।
तराईन का द्वितीय
युद्ध
उस समय कन्नौज में महाराज जयचंद्र का राज था। जयचंद्र ने
पृथ्वीराज से बदला लेने के उद्देश्य से मोहम्मद गौरी से मित्रता की और दिल्ली पर
आक्रमण कर दिया। पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को 16 बार परास्त किया लेकिन
पृथ्वीराज चौहान ने सहर्दयता का परिचय देते हुए मोहम्मद गौरी को हर बार जीवित छोड़
दिया। राजा जयचन्द ने गद्दारी करते हुए मोहम्मद गोरी को सैन्य मदद दी और इसी वजह
से मोहम्मद गौरी की ताकत दोगुनी हो
मोहम्मद ग़ोरी ने ग़ज़नी लौटने का फैसला
किया और अपनी हार का बदला लेने के लिए तैयारी की। तबक़ात-ए नसीरी के अनुसार, उन्होंने अगले कुछ
महीनों में 1,20,000 चुनिंदा अफ़गान, ताजिक और तुर्क घुड़सवारों की एक
सुसज्जित सेना इकट्ठा की। इसके बाद उन्होंने जम्मू के विजयराजा द्वारा सहायता से
मुल्तान और लाहौर होते हुए चौहान राज्य की ओर प्रस्थान किया।
पड़ोसी हिन्दू राजाओं के खिलाफ अपने युद्धों के परिणामस्वरूप
पृथ्वीराज के पास कोई भी सहयोगी नहीं था। फिर भी उन्होंने ग़ोरियों का मुकाबला
करने के लिए एक बड़ी सेना इकट्ठा करने में कामयाबी हासिल की। मोहम्मद ने अपने
ग़ज़नी स्थित भाई ग़ियास-उद-दीन से राय-मशविरा लेने के लिये समय लिया। फिर उन्होंने अपने
बल का नेतृत्व किया और चौहानों पर हमला किया। उन्होंने पृथ्वीराज को निर्णायक रूप
से हराया।
शब्दभेदी
बाण से गोरी को उतारा मौत के घाट
अंतत:
मो.गोरी ने पृथ्वीराज को मारने का फैसला किया तभी महा-कवि चंदरबरदाई ने मोहम्मद गोरी तक पृथ्वीराज
के एक कला के बारे में बताया। चंदरबरदाई जो कि एक कवि और खास दोस्त था पृथ्वीराज
चौहान का। उन्होंने बताया कि चौहाण को शब्द भेदी बाण छोड़ने की काला मे महारत
हासिल है। यह बात सुन मोहम्मद गोरी ने रोमांचित होकर इस कला के प्रदर्शन का आदेश
दिया। प्रदर्शन के दौरान गोरी के “शाबास आरंभ करो” लफ्ज के उद्घोष के साथ ही भरी
महफिल में चंदरबरदाई ने एक दोहे द्वारा पृथ्वीराज को मोहम्मद गोरी के बैठने के
स्थान का संकेत दिया जो इस प्रकार है-
“चार बांस
चौबीस गज, अंगुल
अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर
सुल्तान है मत चुके चौहान।”
तभी अचूक
शब्दभेदी बाण से पृथ्वीराज ने गोरी को मार गिराया। साथ ही दुश्मनों के हाथों मरने
से बचने के लिए चंदरबरदाई और पृथ्वीराज ने एक-दूसरे का वध कर दिया।
पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद, उनके पुत्र
गोविंदराज को अजमेर के सिंहासन पर राजा नियुक्त किया। 1192 में, पृथ्वीराज के छोटे
भाई हरिराज ने गोविन्दराज को
हटा दिया और अपने पैतृक राज्य का एक हिस्सा वापस ले लिया।
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